दोहे
प्रश्न बनी है ज़िन्दगी‚ उत्तर देगा कौन।
जिनसे भी हैं पूछते‚ हो जाते हैं मौन।।
दोराहे पर हैं खड़े‚ चलें कौन सी राह।
राह वही अपनाइए‚ मन में जिसकी चाह।।
समय बनाये रंक या‚ दे सोने की खान।
समय बड़ा बलवान है‚ बस इतना तू जान।।
इतना ही बस जानिए‚ यही है जग की रीति।
अगर समय विपरीत है‚ नहीं है कोई मीत।।
रही पुराने समय से‚ बड़े बड़ों की राय।
संयम कभी न खोइये‚ चाहे कूछ हो जाय।।
संचय से बढ़कर यहाँ‚ सदा रहा है दान।
सोने–चाँदी से अधिक‚ मूल्यवान है ज्ञान।।
--000--
- मुहावरेदार कविता
- आज की राजनीति का खेल
छछूँदर के सिर में–
चमेली का तेल । - देश की हालत का क्या रोना
न ऊधों का लेना
न माधो का देना । - मँहगाई की मँहगाई
ऊपर से टैक्स बढ़ा
करेला और नीम चढ़ा ।
- भ्रष्टाचारी बाग में
ईमानदारी की सुगंन्ध
दाल भात में मूसलचंद ।
--000--
**:: -भास्कर तैलंग
0 Comments:
Post a Comment
<< Home