दो कविताएँ
आधुनिक अभिमन्यु
कच्ची उम्र के
अबोध बालक को
भ्रष्टाचार करते देख
हैरानी हुई
पता लगाया
भेद खुला
माता के गर्भ में ही
वह इसका किस्सा सुन चुका था
और भ्रष्ट आचार में वह
आधुनिक अभिमन्यु बन चुका था।
***
महँगाई
शहर के
बाज़ार में
वस्तुओं के
दाम पूछते
नास्तिक के
मुँह से निकला
" हे भगवान"!
बाज़ार में
वस्तुओं के
दाम पूछते
नास्तिक के
मुँह से निकला
" हे भगवान"!
***
**(भास्कर तैलंग )
1 Comments:
aapki kavitayin achchi lag rahi hain. badhayi
nitygopal katare
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