हाइकु
हमें सिखाती
नए नए सबक
असफलता ।
सँभाले रहो
नाज़ुक बड़ी होती
साँसों की डोर ।
घना अँधेरा
हरदम चीरता
नन्हा चिराग ।
जीवन अर्थ
काँटों खिला गुलाब
हमें सिखाता ।
झूठ के अस्त्र
कैसे जीतेंगे भला
सत्य का युद्ध ।
किस दर्जी ने
यह गगन सिला
टाँका नहीं है ।
हर ईसा को
इस धरती पर
सूली मिलती ।
साँझ होते ही
घर लौट आते हैं
उड़ते पंक्षी ।
एकान्त में
लगने लगते हैं
यादों के मेले ।
***
॥ भास्कर तैलंग ॥
1 Comments:
किस दर्जी ने.......
वाह क्या सुन्दर तरीके से बात कही है। ब्लाग बहुत सुन्दर बना है। कुछ कविताएँ और दीजिए।
डॉ॰ के॰ राम्मैया, सुरीनाम
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